अतिरिक्त >> देवताओं का दान देवताओं का दानरुडयार्ड किपलिंग
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धुन्नी भगत के चौबारे में संध्या का भोज हो चुका था और बूढ़े पुरोहित तो धूम्रपान कर रहे थे या माला जप रहे थे। तभी एक नन्हा-सा बच्चा वहाँ आया। उसका मुँह खुला हुआ था।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
देवताओं का दान
धुन्नी भगत के चौबारे में संध्या का भोज हो चुका था और बूढ़े पुरोहित तो
धूम्रपान कर रहे थे या माला जप रहे थे। तभी एक नन्हा-सा बच्चा वहाँ आया।
उसका मुँह खुला हुआ था। उसके एक हाथ में मुट्ठी भर गेंदे के फूल लगे थे और
दूसरे में तंबाकू। उसने घुटनों के बल बैठकर गोबिन्द को दंडवत करने का
प्रयास किया लेकिन वह इतना मोटा था कि अपनी गंजी खोपड़ी के बल आगे को जा
गिरा।
वह एक को लुढ़ककर हाथ-पाँव मारने लगा और गेंदे के फूल एक ओर को जा गिरे तो तंबाकू दूसरी ओर। गोबिंद ने हँसते हुए उसे फिर सीधा कर दिया और उससे तंबाकू ग्रहण करते हुए गेंदे के फूलों पर असीस दी।
‘‘ये पिता जी ने भेजे हैं, ’’बच्चे ने कहा, ‘‘उन्हें बुखार है और वह आ नहीं सकते। आप उनके लिए प्रार्थना कर देंगे न बाबा ?’’
अवश्य मुन्ने; लेकिन ज़मीन पर धुँआ है, और हवा में रात की ठिठुरन है, और पतझड़ के इस मौसम में बिना कपड़े पहने बाहर निकलना अच्छा नहीं है।’’
‘‘मेरे पास कपड़े नहीं हैं,’’ बच्चे ने कहा, ‘‘और आज सारा दिन मैं बाजार तक कंडे ढोता रहा हूँ। दिन में बहुत गरमी थी और मैं बहुत थक गया हूँ।’’ वह थोड़ा-सा काँप गया क्योंकि झुटपुटे में ठंडक थी।
गोबिंद ने अपनी चीथड़ों वाली बड़ी-सी रंग-बिरंगी रजाई के नीचे एक बाँह उठाई और अपनी बगल में उसे बुलाने के लिए छोटी-सी खोह बना दी। बच्चा उसके अन्दर आ गया और गोबिंद ने अपनी पीतल जड़ी चमड़े की गुड़गुड़ी में ताजा तंबाकू भरा। जब मैं चौबारे पर पहुँचा तो गंजी खोपड़ी और चुटिया वाला वह बालक अपनी गोल-मटोल काली-काली आँखों से रजाई की तहों के अंदर से ऐसे झाँक रहा था जैसे कोई गिलहरी अपने कोटर में से देखती है। गोबिंद उस समय मुस्करा रहा था और बच्चा उसकी दाढ़ी से खेल रहा था।
वह एक को लुढ़ककर हाथ-पाँव मारने लगा और गेंदे के फूल एक ओर को जा गिरे तो तंबाकू दूसरी ओर। गोबिंद ने हँसते हुए उसे फिर सीधा कर दिया और उससे तंबाकू ग्रहण करते हुए गेंदे के फूलों पर असीस दी।
‘‘ये पिता जी ने भेजे हैं, ’’बच्चे ने कहा, ‘‘उन्हें बुखार है और वह आ नहीं सकते। आप उनके लिए प्रार्थना कर देंगे न बाबा ?’’
अवश्य मुन्ने; लेकिन ज़मीन पर धुँआ है, और हवा में रात की ठिठुरन है, और पतझड़ के इस मौसम में बिना कपड़े पहने बाहर निकलना अच्छा नहीं है।’’
‘‘मेरे पास कपड़े नहीं हैं,’’ बच्चे ने कहा, ‘‘और आज सारा दिन मैं बाजार तक कंडे ढोता रहा हूँ। दिन में बहुत गरमी थी और मैं बहुत थक गया हूँ।’’ वह थोड़ा-सा काँप गया क्योंकि झुटपुटे में ठंडक थी।
गोबिंद ने अपनी चीथड़ों वाली बड़ी-सी रंग-बिरंगी रजाई के नीचे एक बाँह उठाई और अपनी बगल में उसे बुलाने के लिए छोटी-सी खोह बना दी। बच्चा उसके अन्दर आ गया और गोबिंद ने अपनी पीतल जड़ी चमड़े की गुड़गुड़ी में ताजा तंबाकू भरा। जब मैं चौबारे पर पहुँचा तो गंजी खोपड़ी और चुटिया वाला वह बालक अपनी गोल-मटोल काली-काली आँखों से रजाई की तहों के अंदर से ऐसे झाँक रहा था जैसे कोई गिलहरी अपने कोटर में से देखती है। गोबिंद उस समय मुस्करा रहा था और बच्चा उसकी दाढ़ी से खेल रहा था।
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